क्या हैं उषा पान, क्यों हैं आयुर्वेद में अमृत समान

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asked Nov 28, 2016 in Health Issues by sonigyandeep

प्रात : काल खाट से उठकर, पिए तुरतहि पानी।
उस घर वैद्द कबहुँ नहीं आये, बात घाघ ने जानी।।

शरीर के लिए विषतुल्य हानिप्रद गंदगी को शरीर से बाहर निकाल फेंकने के लिए उषा पान जैसा अमोघ अस्त्र भारतीय परम्परा की ही देन हैं, जो भारतीय महाऋषियों के शरीर विषयक सूक्षम एवं विषद अध्ययन की खूबसूरत अभिव्यक्ति हैं। आइये जाने इसके लाभ। “काकचण्डीश्वर कल्पतन्त्र” नामक आयुर्वेदीय ग्रन्थ में रात के पहले प्रहर में पानी पीना विषतुल्य बताया गया हैं। मध्य रात्रि में पिया गया पानी “दूध” के सामान लाभप्रद बताया गया हैं। प्रात : काल (सूर्योदय से पहले) पिया गया जल माँ के दूध के समान लाभप्रद कहा गया हैं।

बर्तन का महत्व
उल्लेखनीय हैं के लोहे के बर्तन में रखा हुआ दूध और ताम्बे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीने वाले को कभी यकृत (लिवर) और रक्त (ब्लड) सम्बन्धी रोग नहीं होते। और उसका रक्त हमेशा शुद्ध बना रहता हैं।

उषा पान के लिए पिया जाने वाला जल ताम्बे के बर्तन में रात भर रखा जाए, तो उस से और भी स्वस्थ्य लाभ प्राप्त हो सकेंगे। जल से भरा ताम्बे का बर्तन सीधे भूमि के संपर्क में नहीं रखना चाहिए, अपितु इसको लकड़ी के टुकड़े पर रखना चाहिए। और पानी हमेशा नीचे उकडू (घुटनो के बल – उत्कर आसान) बैठ कर पीना चाहिए।

ऐसे लोग जिन्हे यूरिक एसिड बढे होने की शिकायत हैं, उनके लिए तो सुबह उषा पान करना किसी रामबाण औषिधि से कम नहीं।

क्या हैं उषा पान
प्रात : काल रात्रि के अंतिम प्रहार में पिया जाने वाल जल दूध इत्यादि को आयुर्वेद एवं भारतीय धर्म शास्त्रो में उषा पान शब्द से संबोधित किया गया हैं। सुप्रसिद्ध आयुर्वेदीय ग्रन्थ ‘योग रत्नाकर’ सूर्य उदय होने के निकट समय में जो मनुष्य आठ प्रसर (प्रसृत) मात्रा में जल पीता हैं, वह रोग और बुढ़ापे से मुक्त होकर सौ वर्ष से भी अधिक जीवित रहता हैं।

उषा पान कब करना चाहिए
प्रात : काल बिस्तर से उठ कर बिना मुख प्रक्षालन (कुल्ला इत्यादि) किये हुए ही पानी पीना चाहिए। कुल्ला करने के बाद पिए जाने वाले पानी से सम्पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता। ध्यान रहे पानी मल मूत्र त्याग के भी पहले पीना हैं।

उषा पान के फायदे।
सवेरे ताम्बे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीने से अर्श (बवासीर), शोथ(सोजिश), ग्रहणी, ज्वर, उदर(पेट के) रोग, जरा(बुढ़ापा), कोष्ठगत रोग, मेद रोग (मोटापा), मूत्राघात, रक्त पित (शरीर के किसी भी मार्ग में होने वाला रक्त स्त्राव), त्वचा के रोग, कान नाक गले सिर एवं नेत्र रोग, कमर दर्द तथा अन्यान्य वायु, पित्त, रक्त और कफ, मासिक धर्म, कैंसर, आंखों की बीमारी, डायरियां, पेशाब संबन्‍धित बीमारी, किड़नी, टीबी, गठिया, सिरदर्द आदि से सम्बंधित अनेक व्याधियां धीरे धीरे समाप्त हो जाती हैं।

जल की नैसर्गिक शक्ति।
जल में एक नैसर्गिक विद्दुत होती हैं, जो रोगो का विनाश करने में समर्थ होती हैं। इसलिए जल के विविध प्रयोगो से शरीर के सूक्षम अति सूक्षम, ज्ञान तंतुओ के चक्र पर अनूठा प्रभाव पड़ता हैं, जिस से शरीर के मूल भाग मस्तिष्क की शक्ति एवं क्रियाशीलता में चमत्कारिक बढ़ोतरी होती हैं।

मगर आज एक सोची समझी साज़िश के तहत हमारे जल को भी अति दूषित कर दिया गया हैं और इसको साफ़ करने के लिए जो विधिया हम इस्तेमाल करते हैं वो पानी को साफ़ तो करती हैं मगर साथ में पानी में बचे खुचे मिनरल्स भी निकाल देती हैं। इसलिए जब हम पहाड़ो पर कभी जाते हैं तो वहां के पानी में बहुत बढ़िया स्वाद आता हैं।

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