जोड़ों का दर्द महामारी का रूप लेता जा रहा है। युवा जोड़ भी अब इसके निशाने पर हैं। इससे पहले कि जाड़ा जोड़ों की तकलीफ को और बढ़ा दे, पहले ही सावधान हो जाएं। जोड़ों के दर्द के कारण और उपचार के बारे में बता रही हैं इंद्रेशा
जोड़ों के दर्द ने अब उम्र की बंदिशें तोड़ दी हैं। आज के हालात में इसे महामारी की संज्ञा भी दी जाए तो गलत नहीं होगा। जोड़ों में दर्द की कई वजहें हो सकती हैं, जिनमें आथ्र्राइटिस के विभिन्न प्रकार, बर्साइटिस, अधिक मेहनत की वजह से पैदा हुआ खिंचाव, मोच, चोट वगैरह खास हैं। घुटनों का दर्द सबसे आम है। इसके बाद कंधे व कूल्हों में दर्द से जुड़े मामले सामने आते हैं।
शहरों में रहने वाले अस्सी प्रतिशत भारतीयों में विटामिन-डी की कमी पाई गई है, जो हड्डियों की कई समस्याओं के जोड़ों में दर्द का बड़ा कारण है। पिछले दो दशकों में देश में तीस से पचास आयुवर्ग के लोगों में ऑस्टियोआथ्र्राइटिस की समस्या तेजी से बढ़ी है। हर साल करीब डेढ़ करोड़ नए लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं। बीस से पच्चीस प्रतिशत लोग मस्कुलोस्केलेटल डिसॉर्डर या कहें वातरोग से ग्रस्त हैं, जो मांसपेशियों के अलावा जोड़ों के दर्द का बड़ा कारण बन रहा है। गलत ढंग से बैठकर देर तक काम करने वाले वयस्क कंधे और गर्दन के जोड़ों में दर्द यानी सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। ताजा आकड़ों के मुताबिक पुरुषों की तुलना में महिलाएं तीन गुना ज्यादा संख्या में जोड़ों के दर्द से जूझ रही हैं। रजोनिवृत्ति और बच्चेदानी निकलवाने के बाद महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन की कमी होने से उनकी हड्डियां कमजोर होने लगती हैं। विटामिन-डी, कैल्सियम व प्रोटीन की कमी से हड्डियों का घनत्व कम होना महिलाओं में आम बात है। इसे ही हम ऑस्टियोपोरोसिस कहते हैं।
जिन महिलाओं की बच्चेदानी निकल चुकी हो या रजोनिवृत्ति की स्थिति आ गई हो, उन्हें हफ्ते में एक गोली विटामिन-डी की लेनी ही चाहिए। कैल्सियम की गोली रोज लेनी चाहिए। पथरी से बचने के लिए कैल्सियम कार्बोनेट के बजाय कैल्सियम साइट्रेट मैलेट वाली गोली लेनी चाहिए।
क्यों होता है जोड़ों में दर्द
हमारे शरीर में हर हड्डी के जोड़ वाले सिरे पर कार्टिलेज की परत चढ़ी होती है। यह चिकने, रबर जैसे मुलायम संयोजी ऊतकों का समूह है, जो लचीली गद्दी की तरह काम करता है और जोड़ों को ठीक ढंग से मोड़ने-घुमाने में मदद करता है। कार्टिलेज को स्वस्थ रखने के लिए शरीर इसके ऊपर गाढ़े-चिकने, तैलीय किस्म का एक स्राव निरंतर बनाए रखता है। आहार-विहार की गड़बड़ियों की वजह से कार्टिलेज घिसने लगते हैं या इसकी चिकनाई बनाए रखने वाले गाढ़े स्राव की मात्रा बढ़ जाती है, जिसके कारण जोड़ों में दर्द और सूजन बढ़ जाती है। हड्डियां आपस में रगड़ खाती हैं तो जोड़ों के आसपास सूजन पैदा होने लगती है और अकसर उनका आकार बिगड़ने लगता है। इस हाल में जोड़ों में दर्द बढ़ जाता है। हाथ, पैर, रीढ़ या जिन जोड़ों पर शरीर का भार ज्यादा होता है, वे इससे ज्यादा आक्रांत होते हैं। सामान्य स्थिति में इसे ही हम आथ्र्राइटिस (संधिशोथ) के एक प्रकार ऑस्टियोआथ्र्राराइटिस या अस्थि संधिशोथ के रूप में देखते हैं।
ज्यादा मसालेदार भोजन और शराब के अत्यधिक सेवन से भी गठिया जैसे रोगों का आक्रमण आसान हो जाता है। इन चीजों की वजह से गुर्दे में मूत्र कम या ज्यादा बनने लगता है। यूरिक अम्ल का स्तर बढ़ जाता है। यूरिक अम्ल के क्रिस्टल जोड़ों में जमा होकर गठिया के दर्द का सबब बनते हैं।
जोड़ों की किसी भी परेशानी से बचने के लिए जरूरी है शरीर का वजन नियंत्रण में रखा जाए। यदि कार्टिलेज बुरी तरह नष्ट हो गए हैं तो सर्जरी करानी उचित है। वजन नियंत्रण में रहे तो कृत्रिम घुटने 15 से 20 वर्ष तक काम करते हैं। इस लिहाज से घुटना प्रत्यारोपण के लिए सही उम्र 60 से 65 वर्ष है।
होम्योपैथी भी मदद कर सकती है
यह पद्धति कई बार जोड़ों के दर्द से निजात दिलाने में आश्चर्यजनक रूप से उपयोगी साबित होती है। जोड़ों, खास तौर से गठिया का दर्द कई बार आनुवंशिक कारणों से भी होता है। ऐसे में माता-पिता की वंश परंपरा के रोगों का इतिहास जानने के बाद रोगी के शरीर के सांगठनिक ढांचे के आधार पर दवा का चुनाव करने पर काफी फायदा मिल सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार यदि किसी मरीज के जोड़ों के दर्द में बर्फ रखने से काफी आराम मिलता हो तो उसे होम्योपैथी दवा लीडम-200 की तीन-चार दिन के अंतर पर दी गई कुछ खुराकों से आश्चर्यजनक फायदा मिल सकता है। होम्योपैथी का एक फायदा यह है कि यदि इस पद्धति से ठीक ढंग से इलाज हो जाए तो गठिया जैसे रोगों का आनुवंशिक प्रभाव खत्म हो जाता है।
काम की यौगिक क्रियाएं
कई सूक्ष्म यौगिक क्रियाएं और आसन ऐसे हैं, जो जोड़ों को मजबूत बनाते हैं और दर्द में राहत पहुंचाते हैं। किसी योग्य प्रशिक्षक से ये क्रियाएं सीखकर इन्हें अपनी दिनचर्या में शामिल करें। जोड़ों को मजबूती देने वाले आसनों में वीर भद्रासन, सेतु-बंध आसन, त्रिकोणासन, धनुरासन, उष्ट्रासन, मकर अधोश्वानासन, मृगासन, पवन मुक्तासन, मंडूक आसन, सुखासन, वज्रासन, ताड़ासन आदि का अभ्यास करना चाहिए। इसके अलावा पीठ के बल लेट कर पैरों से हवा में साइकिल चलाने जैसा अभ्यास करना भी घुटनों के लिए खास फायदेमंद है।
खान-पान का रखें खास ध्यान
- ’पौष्टिक भोजन जरूरी है, पर गरिष्ठ भोजन से बचें।
- ’हरी सब्जियों का भरपूर सेवन करें, शरीर को एंटीऑक्सीडेंट मिल सकेंगे। ’प्रोटीन की उचित मात्रा के अलावा विटामिन-डी, विटामिन-के और कैल्सियम की भरपाई का ध्यान रखें।
- ’मुख्य भोजन से पहले भरपूर सलाद खाएं। अंकुरित अनाजों का इस्तेमाल भरपूर करें।
- ’जंकफूड अधिक खाने से बचें।
- ’वसा वाली चीजें कम और उच्च प्रोटीन वाली चीजें ज्यादा सेवन करें। सोयाबीन से प्रोटीन प्राप्त करना बेहतर है।
- ’सुबह का नाश्ता अवश्य करें। देर तक भूखा न रहें।